पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६३०

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सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि

- थी, और लॉर्ड कैनिन ने भारत की नापत्ति को देख कर उसे बीच ही में रोक लिया । उस समय का चम भी ४० वर्ष बाद के बॉक्सरद्ध के समय के चीन से कहीं अधिक निर्बल देश था। सन५७ का जापान तीन भी करीब सौ छोटी छोटी रियासतों में बँटा हुr था,जिनमें परस्पर प्रतिस्पर्धा और आए दिन के संग्राम होते रहते थे। उस समय का जापाम राजनैतिक दृष्टि से किसी प्रकार उस समय के भारत से अधिक बलवान या अधिक अच्छी अवस्था में न था। भारतीय क्रान्ति के ११ वर्ष बाद जापानी देशभक्तों ने, अपने यहाँ की २७३ सैकड़ों बी की पुरानी रियासतों को न्त करदेश में एक प्रधान शासन कायम किया । सन् १८६८ के इस महान परिवर्तन से ही जापान की समस्त जागृति का प्रारम्भ हुआ । प्रसिद्ध अंगरेज़ तत्ववेत्ता हरबर्ट स्पेन्सर का यह ऐतिहासिक पत्रजिसमें उसने भारत की ओर सकेत करते हुए जापानी नीतिशों को यूरोप और श्रमरीका निवासियों की चालों की ओर से सावधान किया, भारतीय क्रान्ति के बाद का ही लिखा हुआ था । कौन कह सकता है कि यदि चीन और जापान दोनों देश पाश्चात्य कॉम के अधीन होने से बचे रहे तो इसका श्रेय किस दरजे तक सन् ५७ की प्राप्ति के उन प्रवर्त्तक पर सश्चालकों को मिलना चाहिए जिन्होंने पशियाई जीवन के उस ऐन नाजुक मौके पर ब्रिटिश महत्वाकांक्षा को कुछ दिनों के लिए एक ज़बरदस्त धक्का पहुँचाया, और अन्य एशियाई देशों को पाश्चात्य कूटनीति की ओर से सावधान हो जाने का मौक़ा दिया । .