पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६३२

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संत,

इक्यावनवाँ अध्याय सन् १८५७ के बाद खन् १८५७ की आज़ादी की जंग से अंगरेज़ नीतिश को आंखें खुल गई । वे अब अनुभव करने लगे कि जिस तेज़ी के साथ वे कुछ पहले से हिन्दोस्तान की देशी रियासतों का एक एक समय फर खात्मा करने और देश के सारे मानचित्र को लाल ऐंग देने की कोशिशों में लगे हुए थे यह्य अंगरेजी राज की स्थिरता के लिए कल्याण सूचक न थो । वे समझ गए कि अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाने की निस्बत अब उसकी मजबूती के के उपाय करना ज़्यादा ज़रूरी है। उन्हें अपनी करीब एक सौ साल की शासन नीति पर फिर से करने को हुई। सन् -८ गौर जरूरत महसूस के अन्दर भारत औौर इन्फ्रेंलिस्तान के अंगरेजी समाचार पत्र और राजनैतिक केन्द्रों में इस विषय की घु वहसें हुई । अन्त को जो