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भारत में अंगरेज़ी राज

१६६८ भारत में अंगरेज़ी राज ख़ास ख़ास उपाय अंगरेजी साम्राज्य की आइन्दा की मज़बूती के लिए सब से ज़्यादा महत्व के समझ गए और जिनके ऊपर बहुत दर्जे तक सन् ५७ के बाद से भारत में अंगरेजी राज की नीति ढाली गई उन्हें हम एक एक कर नीचे बयान करते हैं सन् १८५८ तक ब्रिटिश भारत की हुकूमत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों में थी। ऊपर आ चुका है कि सन १-ईस्ट इण्डिया १६०० ईसवी में इनेंलिस्तान की सलका एलिज़वैध कम्पनी का अन्त ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की रचना की थी और फिर हर बीस साल के बाद इक़लिस्तान की पार्लिमेण्ट एक नए ‘चारटर एक्ट' के ज़रिये हिन्दोस्तान के अन्दर कम्पनी के अधिकारों को पक्का करती रहती थी जिसका मतलब यह था कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी वास्तव में पार्लिमेण्ट की केवल एक एजेण्ट थी । क्लाइव से पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी का काम इस देश में केवत व्यापार करना था। क्लाइव के समय से हिन्दोस्तान के कुछ इलाके के ऊपर कम्पनी का राज शुरू हुआ। उसके बाद वारन हेस्टिग्स ब्रिटिश भारत का पहला गवरनर जनरल नियुक्त हुआ। वारस 3 हेसिटरस हो के समय में इक़लिस्तान के एक मन्त्रो फ़ॉक्स ने पालिं मेण्ट के सामने यह तजवीज़ पेश की कि हिन्दोस्तान के अन्दर जो कुछ इलाक़ा कम्पनी के हाथ आ गया है उसके शासन का इन्तज़ाम है कम्पनी के हाथों से लेकर इङलिस्तान के बादशाह और इझलिस्तान के सन्त्रिमण्डल के हाथों में दे दिया जाय । हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने फ़ॉक्स की इस तजवी को मंजूर कर लिया । किन्तु हाउस था