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भारत में अंगरेज़ी राज

१६७२ भारत में अंगरेजी रंज | दूसरी तरफ़ उद्योग धन्धों के बढ़ने के साथ साथ इनलिस्तान की अनुपजाऊ भूमि में नात को पैदावार भी और कम होती जा रही थी, और वहाँ के लोगों को भोजन पहुँचाने के लिए बाहर से नाज की भी जरूरत थी। इसके लिए राजनैतिक भाषा में एक नया वाक्य “Development of the resources of India” ( हिन्दोस्तान की भूमि की उपजाऊ शक्ति को उन्नति देना ) गढ़ा गया। मतलब यह था कि विशाल भारत भूमि में इस तरह की व्यवस्था की जावे, इस तरह के रास्ते बनाए जायें और सहूलियतें की जावे, जिनसे इस देश से माल और धन के खंचने में आसानी हो, यहाँ के अंगरेजी इलाके के अन्दर रुई की खेती को बढ़ाया जावे और रेनों इत्यादि के जरिए रुईनाज और दूसरे कच्चे माल के जगह जगह से जमा होकर इङलिस्तान भेजे जाने और इडें लिस्तान के नए कारखानों में बने हुए माल को हिन्दोस्तान के शहरों और गावों में पहुँचाने की सुविधाएँ पैदा की जायें । किन्तु ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रहते यह काम पूरी तेजी के साथ नहीं हो सकता था।

दूसरी वजह यह थी कि इङलिस्तान के अनेक लोग हिन्दोस्तान

के ज़रवेज़ मैदान में श्र भाकर बसना और इस देश को ऑस्ट्र लिया, अफ्रीका, अमरीका आदि की तरह इज्ञस्तिान का पक | उपनिवेश बना देना चाहते थे । ईस्ट इण्डिया कम्पनी इस तरह के उपनिवेश बनाने के ख़िलाफ़ थी। असली बात यह थी कि कम्पनी के डाइरेक्टर और हिस्सेदार