पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६३८

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सन् १८५७ के बाद

सन १८५७ के बाद १६७ 14 एं चाहते थे कि हिन्दोस्तान की तिजारत हिन्दोस्तान की हुकूमत गए ई - और हिन्दोस्तान की लूट का सारा फ़ायदा उन्हीं को पहुंचे। , किन्तु इइलिस्तान में उनके वैभव को देख देख कर उनके हजारों और प्रतिस्पर्धा पैदा हो चुके थे 1 लोग चाहते थे कि जो लाभ ने भारत से बस्त कम्पनी को हो रहा है वह अब सारी अंगरेज़ी कौम को हो । ग्रहो कम्पनी के तोड़े जाने का सब से बड़ा कारण था । किन्तु ये दो स्ख़ास वजह बताई गई जिनसे इलिस्तान के लोग

कम्प के तोड़े जाने और ब्रिटिश भारत की हुकूमत बाहरास्त

1 इनेंलिस्तर्टम के बादशाह के हाथों में दिए जाने के लिए बहुत दिनों से श्रान्दोलन कर रहे थे । सन् 1७ के विलय से इन लोगों को मौक़ा मिल गया 1 सन् १८५८ में पार्लिमेट के सामने यह तजबीज़ पेश की गई । इसके जबाव में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के डाइरेक्टरों ने एक लम्बी दर्शनाख्त लिख कर फ़रवरी सन् १८५ में पालिमेण्ट के सामने पेश की । डाइरेक्टरों ने इस दरख़स्त में अपने सौ साल के शासन के लाभ को दिखाते हुए प्रार्थना की कि शांसम की धारा कम्पनी द्दी के हाथों में रहने दी जाय। हाल के विलय की घोर इशारा करते हुए और अपने शासन की सफलता को दर्शाते हुए डाइरेक्टरों ने इस दरम्रास्त में लिखा :-- "इम लोगों को यह दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि हाल की दुर्घटना में यदि देशी रंश पाय पलबे को दमन करने में हम सहायता देने के, य लवे के मार्ग प्रदर्शक यन जाते या यदि देश की आम जनता यस्त थे