पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६४०

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १६७० १६ मार्च सन् १८५८ को एक नई कमेटी नियुक्त की। इस कमेटी का काम नीचे लिखे शब्दों में निश्चित किया गया ‘‘तहकीकात की जाय कि हिन्दोस्तान में, देश के पहाड़ी ख़ास कर ज़िलों और अधिक स्वास्थ्यजनक स्थानों में यूरोपियों की बस्तियों नाबाद करने और उपनिषेप बढ़ाने के किए और साथ ही मध्य एशिया के साथ हमारी तिजारत को तरती देने के लिए क्या क्या किया जा चुका है, या क्या किया जा सकता है ओर उसके क्या क्या सर्वोत्तम उपाय हैं ?’ पर चार्ज मेटकाफ ने यह राय देते हुए कि भारत का शासन कम्पनी के दार्थों से लेकर पार्लिमेण्ट के हाथों में दे दिया जाय लिखा कि यद्यपि मालूम होता है कि हिन्दोस्तान के लोग इस बारे में बिलकुल उदासीन हैं कि हिन्दोस्तान के उपर कम्पनी द्वारा शासन किया जाय या बराइरस्त इज्ाकिस्तान के मत्रियों द्वारा फिर भी भारत को दूसरी रिछायां इस बारे में उदासीन नहीं है, यानी जो यूरोपियन हिन्दोस्तान में रहते हैं और जो कम्पनी के नौकर नहीं हैं और इनके अलावा आम तौर पर वे सब लोग जो दोगली नस के हैं, वे अब कभी भी कम्पनी के शासन से सन्तुष्ट न होंगे । जाहिर है कि इस परिवर्तन में हिन्दोस्तानियों की इच्छा का • " To inquire into the progress and prospects, and the best means to be adopted tor the promotion of Baropean colonitation and settlement in India, specially in the bill districts and healthier climates of that country ; as wel As tor the extension of our commerce with Central Asia."-Tems of Reference, ot be select Committee of the House of Commons, 16th AMarch, 1858