पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६४२

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १६७७ और आतंद्रनामे आप लोगों के साथ इस समय तक किए जा चुके हैं, इन्नलिस्तान की सरकार उन पर कायम रहेगी, भारतीय प्रजा को विश्वास दिलाया गया कि तुम्हारे मज़हब में किसी तरह का दखल न दिया जायगा, और अन्त में लोगों से विप्लव को शान्त करने की प्रार्थना करते हुए प्लफा विक्टोरिया ने एलान किया ‘जय ईश्वर की कृपा से देश में फिर से शान्ति काग्रम हो जायगी, तब इंसारी हार्दिक इच्छा है कि हिन्दोस्तान की कारीगरी को तरजी दी जाय ऐसे पैसे काम बढ़ाए जाय जिनसे आम जनता को लाभ हो और उनकी उनति हों, और शासन इस तरह से चलाया जाय जिससे भारत में रहने वाली हमारी समस्त रियाया को लाभ हो । प्रज्ञा की .खुशहाली ही में इमारा यल है, उनके सम्तोप में हमारी सलामती है और उनकी कृतज्ञता हमारे लिए सब से अच्छा इनाम है । सर्वेश तिमान् परमात्मा हमें और हमारे मातइत अफसरों को बदल , ताकि हम अपनी इन इच्छाओं को अपनी प्रज्ञा के हित के लिए पूरा कर सकें ।" ऊपर लिखा धाक्य इस एलान का सब से अधिक चिताकर्षक बाध्य है । अनेक भोले भारतवासियों के लिए के ये शब्द एलान काफ़ी सान्वना देने वाले साबित हुए और उन पर भरोसा करके सन् ५७ की विशाल ग्रुखाग्नि में समाप्त हो जाने वाले स्वदेशी मुग़ल 4. साम्राज्य की जगह उन्होंने विदेशी अंगरेजी राज को अपना लिया। किन्तु वास्तव में इस प्लान का मूल्य इस तरह के नन्य राजनैतिक एलानों से किसी तरह ज्यादा न था औोर म यह एलान या कम्पनी से लेकर इक़लिस्तान के बादशाह के हार्यों में शाम की बाग का