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भारत में अंगरेज़ी राज

१६७८ भारत में अंगरेज़ी राज दिया जाना दोनों में से कोई बात भारत की ओर अंगरेज शासकों की नीति में किसी तरह के भी मौलिक परिवर्तन का चिन्ह् थी। इस ऐलान का मुख्य उद्देश थाँ स्वतंत्रता संग्राम में असफल भारतवासियों के दिलों को किसी तरह शान्त करना और इसमें सन्देह नहीं, इस उद्देश में अंगरेज़ शासको को काफ़ी सफलता मिली । प्रसिद्ध अंगरेज़ इतिहास लेखक फ्रीमैन ने बहुत दिन बाद इस तरह के एलानों के विषय में लिखा किन्तु जब हम चितिों और लालू की ओोर पाते हैं तो हम भूल के ब्रास चुने हुए मैदान में पहुंच जाते हैं,” निस्संन्देह जो मनुष्य पार्लिमेण्ट के हर काम या हर कानून पर विश्वास कर लेता है, वह थालक की तरह भोला है ।’’ इस तरह के जितने वादे इङलिस्तान ने हिन्दोस्ताभ के साथ किए हैं, उन सबको मारकिस ऑफ़ चैतिसबंरी ने साफ़ "राज नैतिक छल ( Political hypocrisy " स्वीकार किया है। भारत सरकार के प्रसिद्ध और सुयोग्य लॉ मेम्बर सर जेम्स स्टीफ़ेन ने मलका विक्टोरिया के इस ख़ास एलान के विषय में साफ़ कहा था कि यह एलान –“केवल एक रसमी पत्र था, यह कोई श्रह्मद्रनामा न था जो भारत के अंगरेज़ शासकों के ऊपर किसी ने तरह का भी बन्धन हो, इस एलान की कोई भी क़ानूनी क़ीमत

  • "", , But when e cone to manitestoes, proclamations . . .

here we are on the very chose region of lies, . . . . He is oet child-Jike simplicity indeed who believes every act of Parliament, . . . "-Freemen's Ito materical start, , , 259.