पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६४८

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८७ ,। १६३ ‘अंगरेजी सत्ता के उलट जाने से इस तरह के नए बसे हुए ( विदेशी ) लोगों को कोई फायदा न होगा, यबिक उन्हें हर तरह से नुकसान होगा, इसलिए की तरफ़ हिन्दोस्तानिों से किसी भी पद्भव था यगायत्त के समय ये लोग अपना सारा प्रभाव गवरमेण्ट के पक्ष में लगा देंगे और अपने देशी नौकरों, साथियों आदि को भी ऐसा ही करने के लिए उत्तेजित करेंगे, इसके विपरीत भारतवासियों के भाव अंगरे सरकार की भोर इस तरह के हैं कि जब कभी कोई बगावत होती है तब जो लोग बगावत में शामिल नहीं होते वे भी कम से कम तटस्थ रहते हैं, किन्तु सरकार को प्राय: तोई सहायता नहीं देता । सर चार्ज मेटकॉफ और लॉर्ड विलियम चैरिटक भी भरत में अंगरेज़ी उपनिवेश बनाने के पक्ष में थे । उनकी दलीलें भी ठीक इसी तरह की थीं । नतीजा यह हुआ कि सन् १८३३ के चारटर एक्ट में उन अंगरेजों के लिए कई तरह की नई सुविधाएँ कर दी गईजो भारत में आकर बसना चाहते थे । नेपाल के रेज़िडेण्ट ब्रायन हॉटन हॉजसन ने दिसम्बर सन् १८५६ में हिमालय की उर्वर घाटियों में यूरोपियनों के उपनिवेश बनाने के पक्ष में एक अत्यन्त ज़ोरदार पत्र लिखा । उसने लिखा fx हैं ” हिमालय में अपने उपनिवेशों को बढ़ाना अंगरेज़ सरकार के सबच और सबसे अधिक महत्वपूर्ण कर्त्तव्यों में से एक है ।। हॉजसन की राय में “भारत के अन्दर ब्रिटिश सत्ता को स्थायी घनाने के लिए सब से बड़ा, सब से पछा, सवखे निःश% और • ka Indian Naiीद, by Sir Federick Shore.