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भारत में अंगरेज़ी राज

१६८४। भारत में अंगरेजी राज सबसे सुगम राजनैतिक उपाय' ,¥ भारत के अन्दर अंगरेज़ों के , उपनिवेश ही हो सकते थे। हॉजसन की तजवीज थी कि प्रायलैण्ड और स्कॉटलैण्ड के किसानों को मुफ्त जमीनें देकर भारत में बसने के लिए प्रोत्साहित किया जाय । सन् ५७ के बाद इस विषय का आन्दोलन इनलिस्तान में और भी अधिक जोर के साथ होने लगा । इसी लिए सन् १९५८ में पालिमेण्ट ने बह तहकीकाती कमेटी कायम की जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं। इसके साथ साथ अनेक तरीकों से उस समय के अंगरेज शासकों ने अपने देशवासियों और खास कर अंगरेज़ पूंजीपतियों को भारत में आकर बसने के लिए उत्साहित करना शुरू किया। आसाम और कुमाऊं में अंगरेज सरकार ने हिन्दोस्नानियों के ख़र्च पर चाय की काश्त के तजुरवे और यह खुले एलान कर दिया किए कि इन तजुरवाँ के सफल होने पर चाय के सरकारी खेत उन ने अंगरेजों को दे दिए जायेंगे जो इस काम के लिए आसाम और कुमाऊं में बसना चाहेंगे । तजरुवों का सारा ख़र्च हिन्दोस्तानियों के सर पर पड़ा और दोनों स्थानू के चाय के खेत बाद में अंगरेजों . . . . ia accuracement of contaion thra s one of the । हुई। highest and most important duties of the Government, . . . . greatest, surest, soundest and simplest of all political measurgs for the stablisation of the British poer in India, . . . " -Brian Houghton HodgsonRosident of Nepal, on the Colonication of the Hinalayas by Europeans, December, 1856 ,