पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६५०

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१६८५
सन् १८५७ के बाद

सन १८५७ के बाद १६८५ अंक .. के हवाले कर दिए गए । हिन्दोस्तानियों ही के ख़र्च पर कई अंगरेजों को इसलिए ग्रीन भेजा गया कि वे चीन से चाय के बीज लाएँग्रीमो काश्त के तर को सीखें और वहाँ से चीनी विशेषज्ञ साथ लाकर भारत में अपने धन्धे को तरकी दें। पिछले डेढ़ सौ साल से ऊपर के ब्रिटिश शासन में कभी किसी भारतीय व्यापार को उत्तेजना देने के लिए ग्रंगरेज सरकार ने इस तरह्म के प्रयत्न नहीं किए । यूरोपियन पूंजीपतियों की बचत को बढ़ाने और पक्का करने के लिए हिन्दोस्तानी मजदूरों के सम्बन्ध में भारत सरकार ने इस तरह के कानून पास किए जिनसे हजारों भारतवासी इन लोगों के कानूनी गुलाम बन गए 1 इन क़ानूनी गतामो के साथ अंगरेज़ पंजीपतियों और उनके नौकरों का व्यवहार ब्रिटिश भारतीय इतिहास का एक अत्यन्त कलक्षित अध्याय है। ठीक इसी तरह धन इत्यादि की सहायता कुमायूँ ही में लोहे का धन्धा करने वाले ग्रंगरेजों को दी गई। नील की ग्षेती करने वाले अंगरेज़ों को भी भारतवासियों के धन से समय समय पर सहायता दी जा चुकी है और हिन्दोस्तानी मजदूरों के साथ इन निलहे गोगों के घोर अमानुषिक व्यवहार का चरचा ग्रनेक बार देशी समाचार पत्र में हो चुका है । रेलों, सड़कों और उनके विचित्र नियों द्वारा भी इन अंगरेजों को अपने कार्य में हर तरह की सहायता दी गई है । सन् १८५ की कमेटी के सामने गवाहों ने यह सब बातें विस्तार के साथ बयान कीं। गवाहों में से कुछ की राय थी कि