पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६५४

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सन् १८५७ के बाद

. सन् १८१३ के ‘चारटर एक्ट' में एक धारा यह भी थी कि जो अंगरेज़ ईसाई पादरी भारतवासियों के 'धार्मिक -राष्ट्रीय भारों का उद्धार के लिए यानी उन्हें ईसाई बनाने के लिए 'भारत जाना चाहें और यहाँ रहना चाहें” उन्हें "कानून के ज़रिए हर प्रकार की सुविधा ’ दी जाय । चुनाँचे । इसके बाद से ही ईसाई धर्म प्रचार का एक सरकारी मोहकमा (एक्लेजिएस्टिकल डिपार्टमेण्ट)’ भारत में खोल दिया गया और उसका ख़चे ज़बरदस्ती भारत वासियों के सिर मढ़ दिया गया । सन् ५७ के विप्लव के बाद अंगरेज़ नीतिों में इस विषय पर खूब बहसें होने ल 1 मार्च सन् १८५८ की अंगरेजी पत्रिका "ी कैलकटा रिव्यु में एक अंगरेज़ का लिखा हुश्रा नीचे लिखा वाक्य मिलता है जिससे पता चलता है कि उस समय के अंगरेज नीतिश फो पया घया बातें सुझ रही थीं । वह अंगरेज लिखता है-

“हमें चारों ओोर x ” मैं इस समय की आवाजें सुनाई दे रही हैं; जिनमें ज़ोरों के साथ यह सलाह दी जाती है कि या करना चाझिए । कोई कड़ता ६ 'भारत को अवश्य ईसाई यन लेना चाहिए, कोई कहता है। 'भारत भर में अंगरेजों को यसाना चाहिए, कोई कहता है मुस लमानों के माहय को क्या देना चाहिए', कोई कहता है हमें हिन्दोस्तान यान को सूत्म कर देना चाहिए यूर उसकी जगह अपनी मातृभाषा ( अंगरेज़ी ) प्रचलित कर देनी चाहिए'। ये इनमें से केवल थोड़ी सी बातें हैं ।'e • " . . . on handhear voices of the times . . ever we Alte uring १he nopulat measure of the hour, 'India must be christianized -.