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भारत में अंगरेज़ी राज

१६९० भारत में अंगरेजी राज सन् ५७ के बाद अधिकांश अंगरेज नीतिश इस बात को और 'अधिक ज़ोरों के साथ अनुभव करने लगे थे कि भारतवासियों के दिनों से राष्ट्रीयता के रहे सहे भावों को मिटा देना और आइन्दा इस तरह के भावों को पनपने न देना अंगरेजी साम्राज्य की स्थिरता के लिए आवश्यक है । इसके उस समय दो मुख्य उपाय सोचे गए-(१) भारत में ईसाई मत प्रचार और (२) अंगरेजी शिक्षा । मका विक्टोरिया ने अपने प्लान में यह वादा किया था कि मजहब के मामले में अंगरेज सरकार किसी तरह का पक्षपात न करेगो । किन्तु बिप्लब के कंवल अगले ही वर्ष इङलिस्तान के प्रधान मन्त्री लॉर्ड पामर्सटन ने ईसाई पादरियों के एक डेपुटेशन के उत्तर में कहा- ‘मालूम होता है कि अन्तिम लक्ष्य के विषय में हम सब का एक ही मत है। समस्त भारत में पूरय से पब्लुिम तक और उत्तर से दक्खिन तक ईसाई मत के फैलाने में जहां तक हो सके मदद देना, न केवल हमारा फर्ज ) है बल्कि इसी में हमारा फ़ायदा है ।" ’

  • India must be colonized * The Mohammedan eligion must he

'suppressed, " 'We must abolish the vernaeular and substitute our mother tongue' such are but a fe s, "-The Calate Repty, March 185s, p , 163 ' ' We seen to be all agreed as to the end. It is not only our day bat it is our interest to promote the difirsion of Christianity as far as possible throughout the length and breadth of india, "Lord Pajmerston, "to a deputation headed by the Archbishop of Canterbury, in 1859Tहै। 'Connersion of India, by George Simith, C. L. E., L. L, D, p, 233.