पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६५६

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सन् १८५७ के बाद

सन १८५७ के बाद १६७ सन् ५७ के बिप्लव पर टीका करते हुए अनेक अंगरेज़ पारियाँ ने कहा “हमारे दुश्मन वे मुसलमान थे जिनके मज़ाइय की तारीफ़ करके हमने उन्हें सुना दिया, और वे हिन्दू थे जिनके अन्धविश्वासों को हमने पुष्ट किया किन्तु हमारे सच्चे मित्र वे हिन्दोस्तानी थे जिन्हें हमारे पादरियों ने ईसाई । बना लिया था ३५ इन लोगों के ईसाई मत प्रचार का एक मात्र उद्द अपने साम्राज्य को पक्का करना था । विलियम एडबर्ड बिप्लब के दिन में कम्पनी का मुलाजिम था और बाद में नागरा हाईकोर्ट का एक ज हुथा । उसकी राय थी . "हम विदेशी ग्राामक और चिकोसा समझे जाते हैं और सदा ससके जखैरी, हमारे लिए अपनी रक्षा का सबसे आस्ट्रा उपाय यह है कि इस देश को इसई यना लें; * S & देशी ईसाइर्षों की बस्तियों देश जब में इधर उधर फैल जायेंगी सो वे अनेक वर्षों तक हमारी मज़बूती के लिए स्तरों का काम देंगी, क्योंकि जब तक अधिकांश जनता मूर्तिपूजक ( हिन्दू ) या मुसलमान रहेगी, तब तक ये ईसाई लोग अवश्य राजभक्त रहेंगे ।"a लॉर्ड विलियम टक की कोशिश और पखाव की ईसाई बनाने की तजबीलों का ज़िक्र इससे पहले किया जा चुका है । • ' We are, and ever must be, regarded as threign invaders and con quefors, - . . Our hest safeguard is in the evangeliation of the countrn"; . मैं , Christian settlenments cattered about the country would be as towers ot strength or many years to come, tor they must he loyal as long as the maky of the II ople remain citther idolaters :or fohammedans, "-willia) Edraties.