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भारत में अंगरेज़ी राज

१६६४। भारत में अंगरेज़ी राज मशहूर थे । इन देशों पर अंगरेजों के क़ब्ज़ा करने का एक ख़ास मतलब य था कि इढ़लिस्तान के कारख़ानों को सस्ती रुई भेजी ? जा सके । सन् १८५८ के बाद इसके लिए विशेष प्रयत्न किए गए। एक नई ईस्ट इण्डिया कॉटन कम्पनी’ कायम की गई और रुई की काश्त और उसके इर्फ़लिस्तान भेजे जाने की योर खास ध्यान दिया गया । इइलिस्तान और हिन्दोस्तान के सम्बन्ध का सब से मुख्य रूप उस समय से आज तक कची रुई का भारत से इब्सलि- स्तान जाना और इङलिस्तान के बने हुए कपड़ों का भारत में आकर बेचा जाना है । यही इज्ञालिस्तान के लोगों की जीविका का सबसे बड़ा आधार है । ( ग ) अंगरेज़ पूंजीपतियों को सुविधाएँ भारत में आकर धन्धा करने वाले अंगरेज पूंजीपतियों को शुरू से ख़ास सुविधाएँ मिलती रही हैं। चायनील इत्यादि की खेती कराने वाले अंगरेजों के साथ सरकार की रिआयतों का जिक्र ऊपर इसी अध्याय में किया जा झुका है । इन अंगरेज पूंजीपतियों के फायदे के लिए चाय और नोल के बागीचों के लाखों हिन्दोस्तानी सृजदूरों के साथ जो सलूक भारत सरकार ने जायज रखा है उसकी दूसरी मिसाल ढूंढ़ने के लिए हमें पौने दो हजार साल पहले रोमन गुलामी की प्रथा के श्रमानुषिक इतिहास की शरण लेनी पड़ती है ! सन १८६० में पर एशले एडन ने, जो बाद में वह्वाल का लेफ्टिनेण्ट गवरनर हुआ, साफ कहा था कि ‘‘नील की काश्त कभी भी लोग अपनी इच्छा से नहीं करते, बल्कि सदा उनसे ज़बरदस्ती कराई जाती है । के