पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६६०

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद। १६ ब्रिटिश भारत में चाय श्रेौर नील की काश्त का इतिहास गुलामी ' ' की प्रथा का अत्यन्त एजाजनक इतिहास है । ( घ ) अंगरेजों का नौकरियाँ -ब्रिटिश सता को मज़बूत रखने का उस समय यह भी एक खास उपाय माना गया । आंने अंगरेज स्वीकार कर चुके हैं कि अंगरेजों को जो तनiाहें श्राम तौर पर भारत में दी जाती हैं उससे आधी भी उन्हें इङलिस्तान या किसी दूसरे देश में मिल सकतीं। नम ( च ) असली शासन से भारतवासियों को दूर रखना- बहुत वर्षों तक कॅलिस्तान के हित में भारत का अहित और भारत के हित में इन्नलिस्तान का प्रहित है । पक के उद्योग धन्धों की उन्नति में दूसरे की वे रोजगारी है और एक की खुशहाली में दूसरे की निर्धनता । इसलिए शासन प्रबन्ध में कोई वास्तविक धिकार हिन्दोस्तानियों को देना विदेशी शासकों के लिए कभी भी हितकर नहीं हो सकता । कप्तान पी० पेज ने लन्टन के ईस्ट इण्डिया हाउस से बैठ कर 8 अप्रैल सन् १८१४ को अपने एक मेमोरण्डम में लिखा कि "मैं भारतवासियों की नेक चलनी के इनाम में उनकी इत यदा ', देगा, किन्तु उनके हाथ में सत्ता कभी न उगा,” ईं हैं। " x यही उसूल रोमन लोगों का था । हम भारतवासियों के वर्षों में बिना किसी प्रकार की सत्ता दिए उनकी ट्रगाहो अपनी चोर यनाए रख सकते हैं । उन्हें केवल सा का आभास देना काफी होगाऑौर यद्यपि व्यक्तिगत जीवन में मैं राशकारत के इस उसूल को पृणा की दृष्टि १०७