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भारत में अंगरेज़ी राज

१६४६ भारत में अंगरेज़ी रज से देखता हूँ कि मनुष्य अपने मित्रों के साथ भी इस प्रकार से रहे कि मानों एक दिन वे अवश्य उसके शत्र बनने वाले हैं, फिर भी मैं समस्त हैं कि भारत के शासकों के लिए इस उसूल को सदा ध्यान में रखना ही उचित है । इंगलिस्तान और हिन्दोस्तान दोनों देशों के नीति इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सन् १४३५ के गवरमेण्ट आफ़ इण्डिया एक्ट की असेम्बलियाँ और बजारतें भी ‘सत्ता के आभास से किसी अंश में अधिक नहीं हैं । ( 6 ) कानून और अदालतें ‘भारत की उपजाऊ शक्ति को उन्नति देने(१) का एक खास उपाय आज कल के कानून और कचहरियाँ हैं । जो ‘ताजीरात हिन्द' सन् १८३३ के चारटर एक्ट के बाद लॉर्ड मैकॉले ने बनाया था और जिसका अधिक ज़िक्र हम एक पिछले अध्याय में कर चुके हैं, वह सन् १८५७ की क्रान्ति के बाद भारत के कानून की शकल में रायज हुआ । फ़रीब फ़रवी इसी ढंग के और अंगरेजों ही के बनाए हुए • "I would re ard good conduct (of Natives ) with honour but never with power. . . . t" Nalans intriat htths, ais satelentia netailaiThe good rt of the Natives may be retained without granting the power, the semblance is suficient, and although I abhor in private life that maxit of Rochefaucut's Chich recommends a man to live with his friends as it hey प्रwere one day to be this enemies, I think it may be rememiered with efee by the govereigns of India."Captain P. Page in his Memorandamdated ast India House, April 9th, 1819Rort f tak Set Con , , vol V, p, 480-483.