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भारत में अंगरेज़ी राज

। भारत में । अंगरेजी राज १६ 1 3 F का सहठन। हैं जिनमें ग़रीब से गरीब को बिना पैसे न्याय मिल सकता था। , हठीईआ और मुराल समय के शहरों के उन न्यायालयों की याद दिलाती रिणात । हैं जिनके दबाजों पर लिखा रहता था ‘कोरी ( दरिद्रता ) ही । हतमंद म्यायाधीश के लिए सबसे ज़्यादा फ़ल ( अभिमान ) की चीज़ इंसाली है' और जिनके धर्मभीरु । न्यायाधीशों के लिए किसी के यहाँ जारी है दावत में जाना या किसो से एक पान तक की भेंट स्वीकार करना | से दी। हराम समझा जाता था। अपनी अपूर्व वीरता। और उसके साथ साथ देशभक्ति के : हर प्रभाव के कारण भारतीय सिपाहियों ने विदेशी ७-भारतीय सेना। राज के संस्थापन में सदा ज़बरदस्त हिस्सा है और लिया है । किन्तु विप्लव के बाद सेना के नए हुआ सफेठम के लिए एक राय कमोशन नियुक्त । कुछ की तजवीज़ थी कि केबल अंगरेज़ और दोगले सिपाही भारतीय सेना में रखे जायें, किन्तु इससे काम न चल सकता था । कुछ और लोगों की ।

तजबीज थी कि अंगरेज सिपाहियों के साथ साथ थोड़े से अरव,
  • के बमो और अफ्रीका के हशी भी भारतीय सेना में भरती किए
जायें । इस तरह की सलाहें देने वाले बिप्सव से डर गए थे और

हिन्दोस्तानी सिपाहियों को पलटनों को विलकुल तोड़ देना चाहते थे । किन्तु इस तजबीज से भी काम न चल सका । अन्त को यह तजवीज़ ठही कि हिन्दोस्तानी पलटनों में ब्रिटिश भा रतीय प्रजा के मुक़ाबले में नेपाल के गोरखों, सरहद । के पठानों, जम्मू के डोगरों राजपूताने के राजपूत, पटियाले आदि के सिखों और मराठा