पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६६४

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १६8 रियासतों के मराठों को तरजीह दी जाय । तोपढ़ाने की नौकरियां "विश्वास के कारण देशी सिपाहियों के लिए बन्द कर दी गई क्योंकि अंगरेज लेक कॉलफील्ड के अनुसार “इस महकमें में हिन्दोस्तानी सध से अधिक योग्यता प्राप्त कर लेते हैं ।’ देशी सिपाहियों को गोरे सिपाहियों के मुकाबले में घटिया हथियार मिलने लगे । फ़ौज के बड़े बड़े और अपनी ज़िम्मेदारी के सुझदे उनके लिए बन्द होगए। करनल मॉलेलम लिखता है- ‘अपने देशी सिपाहियों के साथ हमारी बेवफ़ाई (Bad faith) थी जिसने उंनके विरों को हमारी श्योर से सशद्द कर दिया ईं हैं। ‘सहियों को प्रोर हमारी यह बेयताई ठीक पहले आफ़ग़ाम युद्ध के याद से शुरू हो जाती है । बिप्लव को दमन करने का सारा खर्च यहाँ तक कि इंगलिस्तान में गोरे सिपाहियों क शिक्षा देने और उनके भारत आने जाने का ख़र्च तक हिन्दोस्तान से वसूल किया गया । हिन्दोस्तान से बाहर के अंगरेज़ों के अनेक मुद्दों का खर्च भी हिन्दोस्तान से लिया गया है । मेजर विनगेट लिखता है कि सन् १८५ में ७१८७ अंगरेज सिपाही भारत में पल रहे थे और इनके अलावा १६,४२७ अंगरेज सिपाही ऐसे थे जो उस समय इङलिस्तांन में रहते थे, इनलिस्तान की रक्षा करते थ और जिन्हें तनख़्ाहें हिन्दोस्तान से दी जाती थीं। जब कभी इढ़लिस्तान से हिन्दोस्तास पलटन लाने की ज़रूरत होती थी तो उन गोरी पलटन के इढ़लिस्तान से चलने के छ