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भारत में अंगरेज़ी राज

१७० भारत में अंगरेजी राज २-घिना जाति-पांति, धर्मसम्प्रदाय या ऊंच नीच के भेद भाब के समस्त भारतवासियों में परस्पर प्रेमविश्वास और ऐक्य का संचार करना और ३५ करोड़ देश वासियों के हित के सामने अपने अपने व्यक्तिगत या छोटे छोटे सामूहिक स्वार्थ को तिलाजलि देने के लिये सदा तथ्यार रहना। ३-विदेशी शासन में और शासन से सम्बन्ध रहने वाले इर मोहकमे में शासकों के साथ भारतवासी मात्र का बढ़ता हुआ असहयोग । इन उपायों की सफलता के लिए सबसे बड़ी ज़रूरत इस बात की है और एक प्रकार से इसी में हमारी अन्तिम सफलता की कुंजी है कि हम किसी क़दम पर भी अपने श्र कल के जीवन के सर्वोच्च सिद्धान्त और इस युग के सर्वोच्च प्रादर्श 'अहिंसा' से. डिगने न पाव । यही भारत के लिए उद्धार का एक मात्र मार्ग और भारतवासियों के लिए धर्म का एक मात्र पथ 1 इसी पर भारत .. और इंगलिस्तान दोनों का भावी जीवन निर्भर है। इसी में इन ' , दोनों देशों का और इनके ज़ रिए शेष संसार का वास्तविक कल्याण है । ।