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भारत में अंगरेज़ी राज

११६८ भारत में अंगरेजी राज सिंह के पास उपहार ले जाने की इजाजत दी थी, तो इस साफ़ शर्त पर दी थी कि कभी किसी तरह का फ़ौजी सामान उस नदी के रास्ते न ले जाया जायगा । अब लॉर्ड ओकलैण्ड ने उस समय की इस सन्धि को रद्दी काग़ज़ की तरह फाड़ फेंका । केवल इतना ही नहीं, वरन् के लिखता है यह मालूम था कि अमीर निर्बल हैं, यह भी माना जाता था कि उनके पास खूब धन है, तय हुआ कि उनका धन ले लिया जाय और उनके देश पर क़ब्ज़ा कर लिया जाय । उनकी सन्धियों को सन्नो के ज़ोर तोड़ देने का निश्चय किया गया, किन्तु साथ ही मित्रता और परस्पर प्रेम के के अनेक कपट वाों की बौछार जारी रक्खी गई 's सिन्ध के अमीरों से यह कहा गया कि आइन्दा से आप शाह शुजा को अपना अधिराज स्वीकार करें और अमीरों के साथ उसको अफ़ग़ानिस्तान की गद्दी पर बैठाने के नई सन्धि लिए अंगरेजों को धन की सहायता दें। अमीरों से तीन लाख रुपए सालाना भविष्य के लिए बतौर खिराज के, और इक्कीस लाख रुपया नकद युद्ध के खर्च के लिए तलब किए गए। इस सब के लिए एक नई सन्धि उनके सामने पेश की गई। उस में समय की इस समस्त घटना को बयान करते हुए एक इतिहास लेखक, जो अंगरेजों के साथ था लिखता है। • 44 The Amirs were known to be wealkk and they were beJieved to be । wealthyTheir money was to be taken : their country to be occupied their treaties to be set aside at the point of the bayonet but amidt a shower of typocritical expressions of friendship and good will. "-Kaye's lariory of ht lwar it A/gaairtay, vol . i, p, 40t.