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भारत में अंगरेज़ी राज

११७२ भारत में अंगरेज़ी राज को देख कर धीरे धीरे उस पत्र का हृदय भी अंगरेजों से फिर गया, जो प्रारम्भ में अंगरेजों और शाहशुजा के पक्ष में हो गया था । अफ़ग़ानिस्तान के अन्दर अंगरेज़ के अत्याचारों के विषय में स्वयं पण्डित मोहनलाल ने, जो उस समय अंगरेजों के साथ था। और उनका एक ख़ास यादमी था, अपनी पुस्तक ‘लाइफ़ ऑफ़ दोस्त मोहम्मद ख़ाँ' में साफ़ साफ़ लिखा है कि अंगरेज़ ने राज- शासन न खुले अपने हाथों में लिया और न शाहशुजा के सुपुर्द किया । ऊपर से दिखाने के लिए उन्होंने तख़्त शहलूजा को दे दियाकिन्तु भीतर ही भीतर वे सल्तनत की छोटी सी छोटी बातों में भो सम्धिपत्र के विरुद्ध हस्तक्षेप करते रहे । परिणाम यह हुआ है कि शाहशुजा और उसके आदमी भी अंगरेजों से असन्तुष्ट हो गए । इसके अतिरिक्त मोहनलाल लिखता है कि अंगरेजों ने वहाँ के विविध सरदारों के साथ जो गम्भीर बादे किए थे उनमें से

एक को भी पूरा न किया । अंगरेज़ अफ़सरों की दस्तख़ती चिट्ठियाँ

इन सब सरदारों के पास मौजूद थीं, किन्तु उनकी जरा भी परवा न की गई । पण्डित मोहनलाल के शब्द हैं कि ‘वास्तव में हमारे . अपने वादों को तोड़ने और अपने राजनैतिक व्यवहार में लोगों को

धोखा देने की मिसालेंजिनका मुझे पता है, वे इतनी अधिक हैं।

कि उन्हें एक सिलसिले में जमा कर सकना कठिन है /g के • "There are, in fac4such numerous initances ctiolating our eagage ments and deceiving the people in our political proceedings, within what am acquainted t, that it would be bard to assemble thern in one series." -Dout Moarat khalt, pp. , 209. It: of