पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११८८
भारत में अंगरेज़ी राज


पाउण्ड का घाटा हुआ, जो सन् १८४०-४१ में बीस लाख पाउण्ड और बढ़ गया।

लेकिन फिर भी एशिया के अन्दर कम्पनी की सेना की इस ज़बरदस्त जिल्लत को धोना आवश्यक था। दोस्त मोहम्मद ख़ाँ अभी तक भारत में कैद था और अनेक अंगरेज़ बन्धक अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद थे । युद्ध बन्द करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान के साथ कोई बाज़ाब्ता सन्धि भी न हुई थी।

. जनरल पोलक एक नई विशाल सेना सहित अफ़ग़ानिस्तान भेजा गया । लॉर्ड एलेनब्रु के नाम ड्यूक ऑफ़दोबारा चढ़ाईवेलिङ्गटन के एक पत्र में लिखा है कि काबुल पहुँच कर जनरल पोलक ने अपनी सेना को आज्ञा दी कि काबुल के मुख्य बाज़ार और वहाँ की दो सुन्दर मसजिदों को आग लगा दी जाय 1 जनरल पोलक की आज्ञा का पालन किया गया । उसके बाद कहा जाता है कम्पनी की सेना ने काबुल के नगर को लूटा और कई इमारतों को ज़मीन से मिला दिया।

किन्तु अन्त में अंगरेज़ों को फिर एक बार अफ़ग़ानों के हाथों हार स्वीकार करनी पड़ी। अकबर खा़ँ औरयुद्ध का अंत उसके अफ़ग़ानियों ने इस बार भी अंगरेज़ों के साथ काफी उदारता का व्यवहार किया और सन्धि हो गई । दोस्त मोहम्मद ख़ाँ और उसके साथ के अन्य अफ़ग़ान कैदी काबुल पहुँचा दिए गए। दोस्त मोहम्मद खाँ फिर अफ़ग़ानिस्तान के तख़्त पर बैठा। युद्ध के समस्त अंगरेज़ बन्धक छोड़ दिए गए । पोलक