पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२५

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टीपू सुल्तान

४३ टीपू सुलतान सन् १७६२ में निज़ाम और पेशवा दोनों ने टोपू के विरुद्ध अंगरेज़ों का साथ दिया था। उस समय की सन्धि में यह तय हो गया था कि यदि टीपू की ओर से सन्धि की शर्तों का उल्लन होगा तो अंगरेज़, निजाम और पेशवा तीनों मिलकर उसका मुकाबला करेंगे । टोपू ने ईमानदारी के साथ सब शों का पालन किया, इस लिए अब घेल्सली ने टीपू पर हमला करने से पहले निजाम और पेशवा से सलाह करने के बजाय निजाम को अपने 'सब्सीडीयरी एलाएन्म' के जाल में कैद कर लिया, और जब पेशवा के दरबार में 'मसीडीयरी एलाएन्स' की चाल न चल सकी तो पेशवा को फंसाए रखने के लिए सोंधिया को उकसा कर उमे एक विशाल सेना सहित पेशवा के पीछे लगा दिया और उस सेना द्वारा पेशवा के इलाके को लुटवाना शुरू कर दिया। जेम्स मिल ने अपने इतिहास में साबित किया है कि फ्रांसीसियों के उस समय टीपू के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत पर हमला करने की कोई किसी तरह की सम्भावना तक न थी। उसने यह भी दिखलाया है कि जिन कागज़ों के आधार पर टीपू पर फ्रांसीसियों के साथ साजिश करने का इलज़ाम लगाया गया उनमें से कुछ ऐसे थे जिनसे टीपू का कोई दोष सावित नहीं होता और बाकी साफ़ जाली थे। इससे अधिक हमें इन भूठे इलज़ामों की छानबीन की श्रावश्यकता नहीं है। मद्राल के गवरनर हैरिस ने २३ जून सन् • History of India, by Mall vol vi