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भारत में अंगरेज़ी राज

200 भारत में अंगरेज़ी राज प्राप्त की थी और होलकर और राजा भरतपुर के विरुद्ध उनका यह उपाय भी निष्फल जा रहा था। अंगरेज़ जाति एक व्यापारी जाति है । ईस्ट इण्डिया कम्पनी इंगलिस्तान के व्यापारियों को एक कम्पनी थी। यदि दूसरे देशों में अंगरेजी साम्राज्य का बढ़ना इन लोगों को प्रिय था तो केवल इसलिए क्योंकि उससे उन्हें आर्थिक लाभ की आशा थी इंगलिस्तान के लोगों ने भारत के अन्दर अंगरेज़ी साम्राज्य स्थापित करने में कभी एक पैसा भी इंगलिस्तान के कोष से लाकर खर्च नहीं किया । ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का संस्थापन केवल हिन्दोस्तानियों के पैसे से और अधिकतर हिन्दोस्तानियों ही के रक्त से हुआ है। अंगरेज़ कौम किसी भी दूसरी हानि को सहन कर सकती है, किन्तु धन की हानि उसके लिए सर्वथा असह्य है। यही कारण था कि इंगलिस्तान के शासक और कम्पनी के डाइरेक्टर दोनों इस समय माकिस घेल्सली को गवरनर जनरल के पद से अलग करके इंगलिस्तान वापस बुला लेने के लिए उत्सुक थे। कम्पनी की आर्थिक स्थिति इस समय बहुत खराब थी। . भारत में कम्पनी का खज़ाना खाली पड़ा था। कम्पनी की आर्थिक लखनऊ, बनारस और अन्य कई स्थानों से स्थिति मार्किस वेल्सली ने कम्पनी के नाम पर बड़ी बडी रकमें कर्ज ले रक्खी थीं जिनमें बीस लाख रुपए की एक रकम लखनऊ के नवाब वज़ीर से कर्ज ली गई थी। इस समय वेल्सली फिर नवाब वज़ीर पर जोर देकर उससे दस लाख रुपए और कर्ज