पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६३०

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तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध १०२६ अधिकार न. था। इस पर अप्पा साहब को अपने तई निर्दोष साबित करने का कोई मौका नहीं दिया गया और न अप्पा साहब के सामने कोई सुबूत पेश किए गए । वास्तव में पेशवा बाजीराव और राजा अप्पा साहब दोना के मामलों में किस्सा 'भेड़िए और मेमने' का था । अप्पा साहब को दोषी ठहरा कर फैसला किया गया कि उसे इलाहाबाद के किले में कैद कर दिया जाय । उसकी जगह नागपुर की दिखावटी गद्दी पर राघोजी भोसले का एक दुध मुंहा नाती राजा बना कर बैठा दिया गया, और तय कर दिया गया कि नए राजा की नाबालगी में राज का समस्त प्रबन्ध रेज़ि- डेण्ट के हाथों में रहे। जो सन्धि हाल में अप्पा साहब के साथ की गई थी और जो नए राजा के साथ कायम रही, उसके अनुसार " भोसले राज का करीब आधा और अत्यन्त उर्वर भाग कम्पनी के शासन में आ गया। इस भाग में गढ़ामण्डला का प्रान्त, जिसमें मुख्य नगर जबलपुर है, और सोहागपुर, होशङ्गाबाद, सिवनी-छपारा और गाडरवाड़ा के ज़िले जो नर्मदा के दक्खिन में हैं शामिल थे। भोसले राज की कुल सालाना श्रामदनो करीब साठ लाख थी, इसमें से वह हिस्सा जो कम्पनी को मिला, अट्ठाइस लाख रुपए सालाना से ऊपर का था, जिसमें से कि गवरनर जनरल के बयान के अनुसार वसूली के खर्च को निकाल कर साढ़े बाईस लाख रुपए सालाना नकद कम्पनी को बचने लगे। जका बटवारा