पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७१५

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सन् १८३३ का चारटर एक्ट

सन् १८३३ का चारटर एक्ट ११११ को अयोग्य, असहाय और नालायक कह कर सदा के लिए उसी देश के अन्दर नीच बना कर रक्खा जाता है जिसे कि उनके पूर्वजों ने जगत भर में प्रसिद्ध कर रवा था । "नवीं कसौटी-सार्वजनिक सन्तोष । "क्या भारतवासी सन् १८३३ के कानून की काररवाई से सन्तुष्ट हैं ? यदि वे हो तो बड़े आश्चर्य की बात है; और वे सन्तुष्ट नहीं हैं । वे बलवा नहीं करते ; वे विरोध नहीं करते ; वे भारतीय सरकार के खिलाफ़ सिर नहीं उठाते;x xx क्योंकि अंगरेज़ी शासन के अधीन सरकार की ताकत उनके मुकाबले में बहुत ज़बरदस्त और सुसङ्गठित है x xx। "मदास की प्रजा शिकायत करती है कि उनके समाज का समस्त साँचा उलट पुलट कर दिया गया, जिससे उनको हानि ही नहीं, बल्कि उनकी बरबादी है। "वे शिकायत करते हैं कि नमक के व्यापार पर, जो कि उनके फीके भात का एक मात्र मसाला है, और जिसके बिना न वे जी सकते हैं और न उनके जानवर, कम्पनी सरकार का ठेका है। "वे शिकायत करते हैं कि उनसे न केवल शहर की दूकानों पर और सबक के ऊपर की दूकानों और सायबानों पर ही टैक्स लिया जाता है, बल्कि उनके धन्धों के हर एक औज़ार पर भी ; यहाँ तक कि चाकुओं तक पर टैक्स लिया जाता है, उन्होंने पार्लिमेण्ट को लिखा है कि उन्हें चाकुओं पर जो टैक्स देना पड़ता है वह कभी कभी चाकुओं की कीमत के बैगुने से भी अधिक होता है। "थे शिकायत करते हैं कि शराब के ऊपर कर वसूल करने के लिए