पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३३

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लेखक की कठिनाइयां

लेखक की कठिनाइयां दिया जावे ! अंगरेज़ों के लिखे हुए भारतीय इतिहास करीब करीब शुरू से आखीर तक इसी दोष से रंगे होते है । वास्तव में शायद संसार के किसी भी देश का इतिहास इस कुदरती दोप द्वारा इतना अधिक विकृत नहीं किया गया जितना हिन्दोस्तान का । हिन्दोस्तान और इङ्गलिस्तान का सम्बन्ध ही इस तरह का है कि इस सम्बन्ध के एक बार शुरू हो जाने के बाद निप्पक्ष भारनीय इतिहास का लिखा जाना करीब करीब नामुमकिन हो गया । एक ओर अंगरेज़ लेखकों की साम्राज्य प्रिय दृष्टि और दूसरी ओर अंगरेजी काल के ज्यादातर भारतीय लेखकों की विदेशी शिक्षा, मानसिक दासता और आजीविका की विकट परिस्थिति 1 नतीजा यह है कि भारतीय इतिहास की जो पुस्तक श्रावकल हमें मिलती हैं, उनमें से अधिकांश में निरर्थक तुच्छ बातों पर जोर दिया जाता है और इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं की अवहेलना की जाती है, उन्हें दबाया जाता है, ऐतिहासिक घटनाओं के सिलसिले के सिलसिले गलत बत्र न किए जाते हैं और अनेक व्यक्तियों के चरित्र को मफेद की जगह काला और काले की जगह सफेद रंग कर हमारे सामने पेश किया जाता है, अनेक सच्ची घटनाओं का इतिहास में पता तक नहीं चलता और अनेक कल्पिन घटनाएँ सच्ची कह कर बयान की जाती हैं। इसी लिए इक्का दुका बिरले अपवादों को छोड़कर हिन्दोस्तानियों और ख़ास कर सर- कारी विश्वविद्यालयों के हिन्दोस्तानी प्रोफेसरों के लिखे इतिहास इस विषय मे और भी अधिक दूषित और लज्जास्पद दिखाई देते हैं। यह सब हिन्दोस्तान की इस समय की जिलाफ कुदरत परिस्थिति का कुदरती नतीक्षा है। इन सब विचारों के समर्थन में हम केवल थोड़े से यूरोपीय विद्वानों की सम्मदि नकल करते हैं।