पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/६५७

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लॉर्ड कॉर्नवालिस

खॉडे कॉर्नवालिस ३७७ इस फ़ौज के साथ बहुत सी फ़ौज करनल मेक्सवेल के अधीन बंगाल को थो। टीपू अपनी सेना सहित मुकाबले के युद्ध का प्रारम्भ

  • लिए आगे बढ़ा । मोडोज़ न टीपू के कई सामन्तों

और टीपू की विज को लोभ देकर अपनी तरफ़ फोड़ लिया। अनेक ___स्थानों पर दोनों ओर की लेनाओं में संग्राम हुए, जिनके विस्तार में पड़ने की ज़रूरत नहीं है । अन्त में टीपू की वीरता और उसके बढ़े हुए युद्ध कौशल की वजह से बजाय इसके कि अंगरेजी सेना भैसूर का कोई हिस्सा विजय कर सकती, टीयू की सेना ने कम्पनी की सेना को पीछे भगाते भगाते मद्रास के निकट तक पहुँचा दिया । टीपू ने फिर करनाटक के काफ़ी इलाके पर कब्जा कर लिया और जनरल मीडोज़ को जगह जगह जवरदस्त हार खाकर, जान और माल का बेहद नुकसान उठाकर, नाकाम मद्रास लौट आना पड़ा। मीडोज की लज्जाजनक हार का हाल सुन कर कॉर्नवालिस ने ___सेना की बाग खुद अपने हाथों में ली। १२ दिसम्बर सन् १७६० को वह एक बहुत बड़ी का एक साथ फौज लेकर कलकत्ते से मदाल के लिए रवाना मुकाबला हुआ। मुमकिन है कि कॉर्नवालिस और उसकी यह नई सेना भी टीपू को वश में करने के लिए काफ़ी न होती। किन्तु इस बीच निज़ाम और मराठों की सेनाएँ अंगरेजों को मद्द के लिए पहुँच चुकी थीं । मालूम नहीं नाना फड़नवीस उस समय पूना में मौजूद था या नहीं और यदि था तो दरबार में उसक