लार्ड कॉर्नवालिस ३६३ सुन्दर प्रबन्ध कर दिया और भारतवासियों में मुकदमेबाजी, जालसाजो, दरोगहलफ़ी, रिशवत सितानी, फूट और वरवादी के फैलने के लिए मैदान साफ कर दिया । इन सब सुधारों (?) और उनके नतीजों को यहाँ और अधिक विस्तार के साथ क्यान करना व्यर्थ है ! निस्सन्देह भारतवासियों के चरित्र पर इनका असर सब से अधिक नाशकर हुआ। सुप्रसिद्ध अंगरेज विद्वान एस० लौर लिखता है :- ___"हमारी न्याय पद्धति कितनी जलील है ! वकालत वकालत को नई को जिस यूरोपीय प्रथा को हम इस देश में प्रचलित ___प्रथा करने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं, क्या उससे अधिक सदाचार से बिलकुल गिरी हुई किसी दूसरी प्रथा का अनुमान भी किया जा सकता है ! x x x क्या हमारी अदालन रिशवत देने के अड्डे नहीं हैं ' और क्या मुकदमेबाजी का शौक कौम के दिमाग पर लगनी बीमारी की तरह असर करके उसे पूरी तरह सदाचार भ्रष्ट नहीं कर रहा है ? जहाँ तक हो सके वहाँ तक लोगों को अपने मुकदमें आपस ही में तय करने का मौका क्यों न दिया जाय ?" Mill. 10) 1,11353. et + Loo) atom (userettle legiurem m utanartoncernea morn. thoroughlk immorathan the stenofilestern dvocacy which re are doing our best to.ntrodrice int. 11 country' are not our law-courts 10t-beds of torruption, and n ot the love otatigation OR- raminating and thoroughly perrertiny the national mand' s not let the people settle their OR Musputer as far aspora - Joll, the famore 'Fnglish Pativist