पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९५
 

का राज्य था। उसने साठ करोड़ की लागत का तख्ते ताऊस बनवाया जिस पर बैठना उसे नसीब न हुआ।

मुमताज़ की मृत्यु पर उसके लिये बादशाह ने ताजमहल बनवाया। जो मुग़ल काल का अनोखा रत्न है जिसे संसार के प्रमुख कारीगरों ने बनाया था। इसके बनाने में कारीगरों ने आठ वर्ष लगाये और इस पर करोड़ों रुपया व्यय हुआ था। तैयार होने पर बादशाह ने प्रमुख कारीगरों के हाथ कटवा डाले थे जिससे कि वे ऐसी इमारत अन्यत्र न बना सकें। औरङ्गजेब के समय तक इसमें कोई जा नहीं सकता था--इस पर औरतों और ख़ाजा सराओं का पहरा रहता था। इसके बाद इस बादशाह ने वर्तमान दिल्ली की नींव डाली। इसमें बे-अन्दाज़ रुपया ख़र्च किया गया। इसकी नींव में कुछ कैदियों के सिर काट कर बतौर कुर्बानी के डाल दिये गये। वह इन्द्र धनुष की शकल में यमुना किनारे बनाया गया था। सफीलों के बारह दर्वाजे थे। चहार दीवारी आधी ईंट और आधी पत्थर की बनवाई। हर सौ क़दम पर एक बुर्ज बनाया गया था, पर तोपें नहीं चढ़ाई गई थीं, लाहौरी दर्वाज़ा और दिल्ली दर्वाज़ा बहुत प्रसिद्ध थे। बाज़ार खूब सजधज का था। उस दिल्ली का वर्णन 'मनूची' इस भाँति करता है---

देहली में अमीरों के महल हैं और बहुत से घर हैं जिनकी छतें फूँस की हैं लेकिन अन्दर से बहुत सजे हुए सुन्दर और आरामदायक हैं। शहर के पूर्वी ओर जिधर यमुना बहती है उस तरफ दीवार नहीं है उत्तर की ओर एक कोने में पूर्व सामना किला है जिसके सामने और दरिया के इस ओर हाथियों की लड़ाई के लिए मैदान छूटा हुआ था। बादशाह यह दृश्य देखने के लिये एक झरोके में बैठ जाते हैं और औरतें भी झरोकों में होती हैं लेकिन पर्दों के पीछे। इसी जगह बैठ कर बादशाह राजाओं, अमीरों और नवाबों की परेड देखते थे, बादशाह के बैठने के स्थान के नीचे दिन रात एक मस्त हाथी नुमायश के तौर पर बँधा रहता है।

किले के चारों तरफ लाल पत्थर की बड़ी-बड़ी दीवारें हैं जिसमें एक बारह महराब का पुल है जिस पर से गुजर कर सलीमगढ़ के किले में, जो