पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३६ के पुत्रों ने आकर नालिश की कि मुराद ने उनके पिता को क़त्ल करा डाला है, सो उसका सिर मिलना चाहिए। इसका किसी ने विरोध न किया, और मुराद के सिर काट लेने की आज्ञा दे दी गई। अब शुजा रह गया । उसे मीर जुमला ने किसी योग्य न छोड़ा था। औरङ्गजेब बराबर उसकी मदद में सेना भेज रहा था । अन्त में वह ढाके की ओर भाग गया, जो समुद्र के किनारे बंगाल का अन्तिम नगर है। अब कहाँ जाय ? सो उसने अराकान के राजा की शरण ली। राजा ने उसे आश्रय दिया, पर जहाज़ न दिया । अब भी उसके पास बहुत धन था। शुजा को भय हुआ कि कहीं में लूटा न जाऊँ। राजा ने उससे प्रस्ताव भी किया कि वह अपनी लड़की उसे ब्याह दे, पर शुजा ने न स्वीकार किया। उल्टे उसने एक षड्यन्त्र रचा, जिसमें बहुत-से पुर्तगीज़ लुटेरे और राजा के रिश्ते- दार भी सम्मिलित थे। इसका अभिप्राय यह था कि महल पर आक्रमण करके राजा और उसके परिवार को क़त्ल कर दिया जाय। पर भेद खुल गया और उसने पेगू को भाग जाना चाहा, पर रास्ता ऐसा विकट था कि यह सम्भव न हो सका। अतः वह परिवार सहित पकड़ा गया और मार डाला गया। उसकी लड़की से राजा ने विवाह कर लिया। शेष परिवार के लोग कैद कर दिये गये। पर उसके पुत्र सुलतान वाक़ी ने फिर षड्यन्त्र रचा और फिर भण्डा-फोड़ हुआ। इस बार शुजा का परिवार-भर क़त्ल कर दिया गया, जिसमें वह लड़की भी थी, जिसे राजा ने विवाहा था, तथा जो गर्भवती थी। सब के सिर कुल्हाड़े से काटे गये। इस प्रकार छः वर्ष के अन्दर यह मुग़ल-परिवार की आग बुझी और अब अकेला ओरङ्गजेब बिना प्रतिद्वन्दी के महान् साम्राज्य और सत्ता का स्वामी था ! बादशाह की तख्तनशीनी का वर्णन बनियर इस भाँति करता है- "उस दिन बादशाह दीवान-ए-खास में तख्त-ताऊस पर बैठा था। उसके कपड़े बहुत ही सुन्दर और फूलदार रेशम के बने हुए थे और उन पर बहुत अच्छा ज़री का काम किया हुआ था। सिर पर ज़री का एक मन्दोल था, जिस पर बड़े-बड़े बहुमूल्य हीरों का तुर्रा लगा हुआ था। उसमें एक पुख- राज ऐसा था, जो बेजोड़ कहा जा सकता है। वह सूर्य के समान चमकता