पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१५३

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१४४ कर दिया गया, तो वे चुप रहे । परिणाम यह हुआ कि कुछ को भिन्न-भिन्न किलों में कैद और कुछ को देश से निकाल दिया। इनमें से एक प्रसिद्ध औलिया की गर्दन भी काटी गई। इसका नाम शाह सैयद सरमद था। ये एक ईश्वरवादी साधु थे । एक जौहरी के पुत्र अमीचन्द से उन्हें प्रेम होगया था। उसी आवेश में ये उसे खुदा कहा करते थे। ये बहुधा नंगे रहते थे। उस ज़माने में क़बी नाम का दिल्ली का क़ाज़ी था। उसने औरङ्गजेब से शिकायत की कि सरमद नाम का एक शख्स शहर में नंगा फिरता है ; वह कल्मा नहीं पढ़ता, और अमीचन्द को खुदा कहता है । औरङ्गजेब ने तुरन्त सिपाहियों द्वारा उसे गिरफ्तार कराया और अपने दरबार में बुलाया। उनकी जो बातें हुईं, वह 'मुन्तखेबुल-नफ़ाइस' नामक फ़ारसी की किताब में इस तरह दर्ज हैं- औरङ्गजेब-खुदायत कीस्त ऐ सरमद दरी दहर (तेरा खुदा कौन है ऐ सरमद इस आलम में) ? सरमद-नमी दानम अमीचन्दस्त या गैर (मैं नहीं जानता कि अमी- चन्द के सिवा कोई और है)। औ०-सरमद ! जामा चिरा नम पोशी (ऐ सरमद ! कपड़े क्यों नहीं पहनता) ? सरमद-आँकस कि तुरा मुल्को जहाँदानी दाद । मारा हमाँ अस्बाबे परेशानी दाद ॥ पोशां लिबास-हर किरा-ऐबे दीद । बे एबाराँ लिबासे उरियानी दाद ॥ (जिस शख्स ने तुझे मुल्क और बादशाहत दी और मुझको तमाम सामान परेशानी के दिये, उसी शख्स ने उसको लिबास पहिनाया, जिसमें कि ऐब देखा और बेऐबों को नंगेपन का लिबास दिया) । औ०-सरमद, कल्मा चिरंग न मे खांदी (सरमद, कल्मा क्यों नहीं पढ़ता)? सरमद-चुगूना खुआनम के वर मन पवीस्त शैताँ (किस तरह पढ़ें, क्योंकि मेरा शैतान ज़बरदस्त है)।