पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/१७९

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१७० पोशीदा करले, तो उसका हक़-ब-जानिब है या नहीं ? हुजूर के खौफ़ से मैं बहुत डरता हूँ, यह नहीं चाहता कि हुजूर मेरे तौरो तरीके की निस्बत ग़लत- फ़हमी फ़रमावें । हुजूर फ़रमाते हैं कि तख्तनशीनी ने मुझे खुदराय और मग़रूर बना दिया, लेकिन यह ख्याल ग़लत है। चालीस बरस के तजरबे से आप ख द ही ख्याल फ़रमा सकते हैं कि ताजशाही किस क़दर गिरांदार चीज़ है, और बादशाह जब दरबार से उठता है, तब किस क़दर फ़िकें उसके दिल को ग़मगीन और दर्दमन्द बनाये रहती हैं। हमारे जद्द-अमजद जला- लुद्दीन मुहम्मद अकबर ने इस ग़रज से, कि उनकी औलाद दानाई, नर्मी और तमीज के साथ सल्तनत करे, अपने अहले-सल्तनत की तारीख में अमीर तैमूर का जिक्र बतौर नमूना लिखकर अपनी औलाद को उसकी तरफ़ तव- ज्जह दिलवाई थी। वह तजकिरा यों है-जब तुर्की सुलतान वैजेद गिरफ्तार होकर अमीर तैमूर के हुजूर में लाया गया, और अमीर बहुत ग़ौर के साथ उस मग़रूर कैदी की तरफ़ देखकर हँस दिया, तब वैजेद ने इस हरकत से नाराज होकर अमीर से कहा-'तुमको अपनी फ़तहमन्दी पर इतना इतराना न चाहिये । दौलत और इज्जत बख्शना या लेना खुदा के हाथ में है । मुम- किन है कि जिस क़दर तुम आज बातें करते हो, कल मेरी तरह पकड़े जाओ।' अमीर ने जवाब दिया-'दुनिया और उसके जरो-दौलत की बेएतबारी से मैं खूब वाकिफ हूँ। और खुदा न करे कि मैं किसी मग़लूम दुश्मन की हँसी उड़ाऊँ। मेरी हँसी का सबक यह न था कि तुम्हारा दिल दुखाऊँ, बल्कि, मुझ तुम्हें देखकर अपनी और तुम्हारी बदसूरती के खयाल ने बेअख्तियार हँसा दिया। क्योंकि, तुम तो काने हो, और मैं लँगड़ा। मेरे दिल में यह गुजरी कि ताज और तख्त आखिर ऐसी क्या चीज है, जिसको पाकर बादशाह अपनी हस्ती को भूल जाते हैं। हालाँकि खुदाए-ताला उसको अपने ऐसे बन्दों को अता करता है, जो काने और लँगड़े होते हैं।' "मालूम होता है कि हुजूर यह ख्याल भरमाते हैं कि मेरी मसरूफ़ियत बनिस्बत उन उमूर के, जिनको मैं मुल्कदारी और सल्तनत के अन्दरूनी इन्तजाम के लिये निहायत जरूरी मानता हूँ, नई फ़तूहात और मुल्कगीरी की जानिब निहायत होनी चाहिये । इस अमर से मैं हरगिज इन्कार नहीं कर सकता कि एक बड़े शाहन्शाह का ओहदा, दौलत और नई-नई फ़तूहात 1