पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२३

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बादशाह ने फिर सत्तर हजार फ़ौज भेजी, जो जनरल वार्डन की अधीनता में थी। पर ये सब नये रंगरूट थे। जनरल वार्डन ने ख़लीद के मारने का एक षड्यन्त्र रचा और एक पादरी को सन्धि चर्चा के लिये भेजा। पादरी ने भण्डाफोड़ कर दिया कि अमुक स्थान पर दस सिपाही तुम्हारे वध के लिये खड़े रहेंगे, और जो दरबान के भेष में होंगे। खलीद ने कौशल से दसों सिपाहियों को रात ही में चुपचाप मरवा डाला और बेधड़क सन्धि स्थल पर पहुँच गया। वार्डन को कुछ पता न लगा। उसके निकट जाकर खलीद ने वार्डन की गर्दन पकड़ ली और उसी समय उसका सिर काट कर उसको सेना में फेंक दिया। यह देख कर ईसाई लोग भयभीत हो गये। इसी बीच में मुसलमान सेना ने धावा बोलकर सारी सेना को तहस-नहस कर दिया और उनका सर्वस्व लूट लिया। इस लट में बेतोल धन मिला और उसके लालच से असंख्य अरबों ने युद्ध में सम्मिलित होने की तैयारी की।

इसके बाद दमिश्क-वासी टॉमस को सेनापति बनाकर लड़ने लगे। यह बड़ा भारी तीरन्दाज था। वीर भी था। खूब लड़ा। अब्बास इब्ने जैद उसके तीर से मारा गया। इस पर अब्बास की स्त्री ने मैदान में आकर टॉमस की आँख अपने तीर से फोड़ दी, फिर भी वह लड़ता रहा और सत्तर दिन तक दमिश्क पर कब्जा न होने दिया।

अन्त में सत्तर दिन के बाद उसकी इच्छा के विपरीत नगर के एक सौ अस्सी प्रतिष्ठित आदमियों और पादरियों ने खलीद से सन्धि करली और नगर मुसलमानों को सौंप दिया। यह भी निश्चय हो गया कि जो नागरिक बाहर जाना चाहें, मय अपने सामान के जा सकते हैं, परन्तु जो रहेंगे उन्हें जज़िया देना होगा और ईसाइयों की पूजा के लिये सात गिरजे न गिराये जायेंगे। एक पादरी ने विश्वासघात करके एक सौ अस्सी मुसलमानों को गुप्त मार्ग से नगर में बुला लिया। इन्होंने फाटक खोल दिये। सारी सेना नगर में घुस आई और कत्लेआम मच गया। अन्त में ख़लीद ने अपना काले गिद्ध का झण्डा दमिश्क के क़िले पर फ़हरा दिया।

जिन लोगों ने इस्लाम धर्म न स्वीकार किया था, वे नगर छोड़कर बाहर चले गये। टॉमस उनके साथ था। ख़लीद ने चार हजार सवार उनके पीछे लगा दिये और जब ये बेचारे आफ़त के मारे एक नदी के किनारे