पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बजे नवाब के पड़ाव पर आक्रमण कर दिया। नवाब के पड़ाव में उस समय साठ हजार सिपाही, दस हजार सवार और चालीस तोपें थीं। सब मज में सो रहे थे। क्लाइव ने यह न सोचा, विशाल सैन्य के जागने पर क्या अनर्थ होगा ? उसने एकदम तोपें दाग़ दीं। एकदम 'गुडम्-गुड़म्' सुनकर नवाब की छावनी में हल-चल मच गई। जल्दी-जल्दी लोग सजने लगे। सिपाही, मशाल जला, हथियार ले तोपों के पास आने लगे। फिर तो नवाब की तोपें भी प्रचण्ड अग्नि-वर्षा करने लगीं। सवेरा हो जाने पर चारों तरफ़ धुआ था। कुछ न दीखता था- तोपों का गर्जन चल रहा था। जब अच्छी तरह सूरज निकल आया, तब लोगों ने आश्चर्य से देखा-क्लाइव की समर-पिपासा बुझ गई है, और उसकी गर्वोन्मत्त पल्टन किले की ओर भाग रही है। नवाबी सेना उनका पीछा कर रही थी। अंगरेज़ों के कटे सिपाही जहाँ-तहाँ धूल में पड़े लोट रहे थे। उनकी तोपें भी छिन गई थीं। क्लाइव की हठधर्मी से अंगरेज़ों का सर्वनाश होगया। इस तुच्छ सेना में १२० अंगरेजों के प्राण गये । नवाब ने जब इस एकाएक युद्ध का कारण मालूम किया, तो-उसे अपने मन्त्रियों का क्रूर-कौशल मालूम हुआ। उसे पता लगा, मीरजाफ़र भी उस नीच काम में लिप्त है, जिसे वह अपना आदरणीय सेनापति समझता था । उसने आक्रमण रोकने की आज्ञा दी, सुर क्षत स्थान पर डेरे डलवाये और अंगरेज़ों को फिर सन्धि के लिये बुला भेजा। क्लाइव बहुत भयभीत होगया था, और सन्धि के लिये घबरा रहा था। परन्तु वाट्सन उसकी बात को न माना। नवाब ने अंगरेज़ों की इच्छानुसार ही सन्धि करली। अंगरेज़ों ने जो माँगा-नवाब ने उन्हें वही दिया। उन्हें व्यापार के पुराने अधिकार भी मिले, किला भी बना रहने देना स्वीकार कर लिया, टकसाल क़ायम करके शाही सिक्के ढलाने की भी आज्ञा मिल गई, और नवाब ने अंगरेज़ों की पिछली शर्त की पूर्ति भी स्वीकार की। इस उदार सन्धि में अँगरेज़ों को कोई बात शिकायत की न रह गई थी। परन्तु नवाब को यह न मालूम था, कि फ्रान्स के साथ जो जाति ६०० -