पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७७

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२६८ "फ्रान्सीसी यदि हमसे सन्धि करलें, तो हम न लड़ेंगे, पर आपको सूबेदार की हैसियत से उनका ज़ामिन होना पड़ेगा।" नवाब ने इस कूट-पत्र का सीधा जवाब दिया-उसका अभिप्राय ऐसा है - "फ्रान्सीसी यदि तुमसे लड़ेंगे, तो मैं उनको रोगा। मेरा अभिप्राय प्रजा में शान्ति रखने का है। सन्धि के लिये मैंने फ्रान्सीसियों को लिखा है। यथा-समय फ्रान्सीसियों का प्रतिनिधि सन्धि के लिये कलकत्त पहुँचा, परन्तु अंगरेज़ों ने सन्धि-पत्र पर दस्तखत करती बार अनेक वितण्डे खड़े किये । वाट्सन साहब इनमें मुख्य थे । निदान, सन्धि नहीं हुई। उपरोक्त-पत्र में नवाब ने यह भी लिखा था कि दिल्ली की सेना मेरे विरुद्ध आरही है। यदि तुम मेरी मदद अपनी सेना से करोगे, तो मैं तुम्हें एक लाख रुपया दूंगा। अब फ्रान्सीसी दूत को लगड़ बताकर वाट्सन साहब ने लिखा- "यदि आप हमें फ्रान्सीसियों को नाश करने की आज्ञा दें, तो हम आपकी सहायता अपनी सेना से कर सकते हैं।' इस बार सिराजुद्दौला घोर विपित्ति में पड़ गया। बादशाही फ़ौज बड़े जोरों से बढ़ रही थी। उधर अँगरेज़ फ्रान्सीसियों के नाश की तैया- रियाँ कर रहे थे। नवाब पदाश्रित फ्रान्सीसियों का सर्वनाश करवाकर अंगरेजों की सहायता मोल -या स्वयं संकट में पड़े। वाट्सन का खयाल था कि नवाब के सामने धर्म-अधर्म कोई वस्तु नहीं, अपने मतलब के लिये वह अंगरेज़ों को राजी करेगा ही। परन्तु नवाब ने वाट्सन को कुछ जवाब न देकर स्वयं सैन्य-संग्रह करने की तैयारियाँ कीं। उधर अंगरेजों की कुछ नई पल्टने बम्बई और मद्रास से आगई। सब विचारों को ताक पर रखकर अंगरेज़ों ने फ्रान्सीसियों से यद्ध की ठान ली, ओर नवाब को संकटापन्न देख, वाट्सन साहन ने नवाब को लिख भेजा- "अब साफ़-साफ़ कहने का समय आगया है। शान्ति की रक्षा यदि आपको अभीष्ट है, तो आज से दस दिन के भीतर-भीतर हमारा सब ,