पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२८६

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२७७ ओर से घटाटोप होगया। आधे घण्टे में १० गोरे और २० काले आदमी मर गये। क्लाइव की युद्ध-पिपासा इतने ही में मिट गई। उसने समझ लिया, इस प्रकार प्रत्येक मिनट में एक आदमी के मरने और अनेकों के ज़ख्मी होने से यह ३०० सिपाही कितनी देर ठहरेंगे ? क्लाइव को पीछे हटना पड़ा। उसकी फ़ौज ने बाग के पेड़ों का आश्रम लिया। वे छिपकर गोले दाग़ने लगे। पर उनकी दो तोपें बाहर रह गई । चार तोपें बाग़ में थीं। नवाब की तोपों का मोर्चा चार हाथ ऊँचा था । अतएव मीरमदन की तोपों से तडातड़ गोले दग रहे थे। यह देखकर क्लाइव घबरा गया। उस समय वह अमीचन्द पर बिगड़ा। उसका मजेदार हाल ‘मुताख़रीन' इस तरह लिखा है- "क्लाइव ने अमीचन्द से बदगुमान होकर गुस्सा फ़र्माया और कहा- "ऐसा ही वायदा था कि ख़फ़ीफ़ लड़ाई में मुद्दआय-दिल हासिल हो जायगा ....और शाही फौज़ भी नवाब की मुनहरिफ़ है। ये सब तेरी बातें खिलाफ़ पाई जाती हैं।' "अमीचन्द ने कहा-'सिर्फ मीरमदन और मोहनलाल ही लड़ रहे हैं । ये नवाब के सच्चे सहायक हैं। किसी तरह इन्हीं को हराइये । दूसरा कोई सेनापति हथियार न चलायेगा।" मीरमदन वीरतापूर्वक गोले चला रहा था उस समय मीरजाफर की सेना यदि आगे बढ़कर तोपों में आग लगा देती, तो अंगरेज़ों की समाप्ति थी। मगर वे तीनों पाजी खड़े तमाशा देखते रहे। क्लाइव ने १२ बजे पसीने से लथ-पथ सामरिक मीटिंग की। उसमें निश्चय किया कि दिन-भर बाग़ में छिपे रहकर किसी तरह रक्षा करनी चाहिये । इतने ही में एकाएक मेंह बरसने लगा। मीरमदन की बहुत-सी बारूद भीग गई। फिर भी वह वीरतापूर्वक भागी हुई सेना का पीछा कर रहा था। इतने ही में एक गोले ने उसकी जाँघ तोड़ डाली। मोहनलाल युद्ध करने लगा। मीरमदन को लोग हाथों-हाथ उठाकर नवाब के पास ले गये। उसने ज्यादा कहने का अवसर न पाया। सिर्फ इतना कहा -“शत्रु बाग़ में भाग गये। फिर भी आपका कोई सरदार नहीं लड़ता, सब खड़े तमाशा देखते हैं।" इतना कहते-कहते ही उसने दम तोड़ दिया। -