पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३०२

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२८३ रे T का फ़ासला तयकरके अचानक मद्रास जा धमका, और क़िले से १० मील दूर छावनी डाल दी । अंगरेज़ काँप उठे। हैदर और अंगरेजी सेना के बीच में 'सेण्ट-टॉमस' की पहाड़ी थी। अंगरेज़ों ने देखा कि यदि हैदर इस पर अधिकार कर लेगा-तौ खैर नहीं। वे जल्दी-जल्दी वहाँ तोपें जमा रहे थे। पर हैदर एक चक्कर काटकर मद्रास क़िले के दूसरे फाटक पर आ पहुँचा। अंगरेजी सेना क़िले के दूसरी ओर फ़सील से दो-तीन मील के फासले पर थी। अंगरेजों के भय का ठिकाना न था। पर हैदर ने पूर्व-वचन के अनुसार गवर्नर को कहला भेजा-"कहो, क्या कहना चाहते हो ?"- गवर्नर ने तुरन्त डुग्र और वैशियर को सुलह की बात-चीत करने को भेजा। डुग्र भविष्य के लिये गवर्नर नियुक्त हो चुका था। वैशियर उस समय के गवर्नर का सगा भाई था। अन्त में सन्धि हुई। इसमें कम्पनी का किसी प्रकार का राजनैतिक अधिकार नहीं माना गया। सन्धि-पत्र हैदर ने जैसा चाहा, वैसा ही इग्लि- स्तान के बादशाह के नाम से लिखा गया। इस सन्धि के आधार पर हैदरअली और इंगलैण्ड के राजा में मित्रता कायम रही। दोनों ने अपने प्रान्त वापस लिये, और हैदर ने एक मोटी रकम युद्ध के खर्च के लिए ली। दूसरी सन्धि के आधार पर अरकाट का नवाब मैसूर का सूबेदार समझा गया, और बतौर खिराज़ के ६ लाख सालाना का देनदार बना। इसके सिवा एक नया युद्ध का जहाज, जिस पर उम्दा ५० तोपें थीं, हैदरअली को अंगरेज़ों ने भेंट किया। इस सन्धि का यह असर हुआ कि इगलैण्ड में इसकी खबर पहुँचते ही ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के हिस्सों की दर ४० फ़ीसदी गिर गई। कुछ दिन बाद मरहठों ने मैसूर पर आक्रमण किया। हैदर ने अंगरेज़ों से मदद माँगी। पर उन्होंने इन्कार कर दिया। हैदर अंगरेजों की चाल समझ गया। उसने टीपू को मरहठों पर सेना लेकर भेजा, और ६ वर्ष तक दोनों में सन्धि होगई। जब हैदर को यह निश्चय होगया कि अंगरेज़ सन्धि को तोड़ रहे हैं, तो उसने अंगरेज़ों पर चढ़ाई करने की तैयारी कर दी, और निज़ाम से मदद मांगी। पर निज़ाम इस बार भी ऐन मौके पर दगा कर गया।