पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३२

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विशाल मुसलमानी सेना ने आकर नेहाबन्द को घेरा। पारसी सेनापति बूढ़ा और कमजोर था, फिर भी उसने नेमान को मार डाला। पर उसके मरने पर हफ़ीज़ सेनापति बना और उसने सेनापति फ़ीरोज़ को मार डाला। पारसी सेना भाग गई। इस युद्ध में एक लाख पारसी मारे गये। और लूट में बादशाह यज्दगुर्द का एक जवाहरात से भरा हुआ डिब्बा मिला, जो ख़लीफ़ा के पास भेज दिया गया। उसे उसने यह कहकर लौटा दिया कि ये कङ्कड़-पत्थर हमारे काम के नहीं, इन्हें बेचकर मुसलमानों को बाँट दो। हफ़ीज़ ने उन्हें तीन अरब, बीस करोड़ रुपयों में बेचा। उसके पास उस समय चालीस हजार सिपाही थे, अतः प्रत्येक को अस्सी-अस्सी हज़ार रुपये मिले। इसके बाद हमदान और रै को दख़ल करके लूट लिया गया और खून की नदी बहा दी। फिर वे आजुरबाद जा पहुँचे और यहाँ का प्रसिद्ध मन्दिर ढा दिया। बादशाह की तीन बेटियाँ गिरफ्तार करके ख़लीफ़ा के पास भेज दी गईं। जब वे ख़लीफ़ा के सामने पहुँचीं तो उसने एक मुसलमान को हुक्म दिया कि इनके जेवर उतार लो। इस पर उन्होंने डाँट कर कहा--- "ख़बरदार! हाथ न लगाना, जेवर हम उतारे देती हैं।" यह सुनकर ख़लीफ़ा की आँखों में खून उतर आया और उसने उन्हें नंगी करके कोड़े मारने का हुक्म दिया। पीछे अली ने ख़लीफ़ा को समझाकर ठण्डा किया और उन अबलाओं जान बचाई। इनमें से एक लड़की से अली ने अपने बेटे हसन का विवाह किया, दूसरी बेटी अब्दुल रहमान इब्ने अबूबकर को और तीसरी अब्दुल्ला इब्ने उमर को दे दी गई।

ईरान मसीह के जन्म से कोई चार सौ वर्ष पूर्व बड़ा शक्तिशाली राज्य था। इसकी सीमा पश्चिम में यूनान और पूर्व में हिन्दुस्तान तक फैली हुई थी। विश्व-विजयी सिकन्दर ने इस देश को मसीह से ३२८ वर्ष पूर्व छिन्न-भिन्न कर डाला था। रोमन्स ने भी इसकी शक्ति को क्षीण कर दिया था।

मुहम्मद साहब ने अपने जीवन-काल में ईरान के बादशाह बुशरू से कहलाया था कि हमारा धर्म ग्रहण कर लो। इस पर उसने हुरमुज़ के अपने हाकिम को कहला भेजा था कि या तो मुहम्मद को क़त्ल कर दो या कैद कर लो, वह पागल है। मुहम्मद की मृत्यु के बाद ख़लीफ़ा अबूबकर ने ख़लीद इब्नेवली को ईरान पर चढ़ाई करने को तैयार किया, पर फिर उसे सीरिया भेज दिया। अब उमर ने अबू अबीदा को एक हज़ार सवार देकर ईरान