पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३५१

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१९ द्विराष्ट्रवाद का कुचक्र सन् ५७ के विद्रोह में अँगरेज़ों ने मुगल साम्राज्य के अन्तिम-बाद- शाह ज़फ़रशाह को कैद करके और उसके शाहजादों और दूसरे मुगल सर्दारों को क़त्ल करके न केवल मुगल साम्राज्य की जड़ खोद कर फेंक दी प्रत्युत् मुस्लिम सभ्यता का भी गला दबोच दिया गया। यह वह समय था जब कि पहली बार हिन्दू और मुसलमान पारस्परिक और धार्मिक भेद-भावों को भूलकर एक दूसरे के साथ बन्धु-भावना से एकत्रित हुए। उस ज़माने में चुन-चुन के मुसलमान नवाबों, शाहजादों और अमीरों का वंश नाश करके हिन्दुओं को उठाया गया और अपनाया गया और उनकी सहायता से नई अंगरेजी अमलदारी की जड़ मजबूत की गई। परन्तु बहुत जल्दी ही कठिनाइयाँ सामने आने लगीं। यहाँ हम हिन्दू-मुस्लिम समस्या को ज़रा और गहराई से देखना चाहते हैं। लगभग ७०० वर्षों तक जब से ७ वीं शताब्दी के मध्य में अरब के युवक विजेता कासिम ने भारत में पैर रखा तब से १६ वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक जबकि महान अकबर ने अपनी नई नीति का विस्तार किया, लगभग ८०० वर्ष तक इस्लाम ने भारत में दुमुखी लड़ाई जारी रखी। यह लड़ाई एक तरफ़ राजसत्तात्मक थी और दूसरी तरफ धर्मसत्तात्मक । इस इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य यह है कि राज सत्तात्मक लड़ाई में हिन्दू हारते गये। अपने राज्यों और देशों को छिपाते गये और मुसलमानों की आधीनता स्वीकार करते गये । परन्तु धर्म सत्तात्मक लड़ाई में निरन्तर सात सौ वर्षों तक युद्ध करते हुए भी हिन्दुओं में अपनी पराजय ३४२