पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

:१३:

मुगलों का साम्राज्य

बाबर ही का आगमन भारत में सच्चे मुग़ल साम्राज्य की नींव जमाने का कारण हुआ और मुग़लों का आगमन भारत में सच्ची मुस्लिम सत्ता की स्थापना का कारण हुआ। यद्यपि यह काल भी हिन्दुओं के विपरीत न था। इस समय देश में कई हिन्दू और मुसलमान शासक थे--और देश भर में अराजकता फैल रही थी, पर चित्तौर की गद्दी पर प्रबल पराक्रमी राणा सांगा उपस्थित थे। यह हम पहले कह चुके हैं कि उसने अठारह बार दिल्ली के पठान बादशाहों को विजय किया था।

मुग़लवंश का संस्थापक बाबर एक उद्यमी साहसी योद्धा था। वह दयालु और उदार था। वह तैमूर की पीढ़ी में था---और इसलिए दिल्ली को अपनी सम्पत्ति समझता था। उसने सरहद और बुख़ारा प्राप्त करने की बड़ी चेष्टा की पर विफल रहा। तब उसने काबुल फतह किया और बाईस वर्ष वहाँ राज्य किया। इसके बाद उसने भारत पर धावा बोल दिया और अनायास ही दिल्ली व आगरा उसके हाथ आगये। गद्दी पर बैठते ही उसने अपने पुत्र हुमायूँ को आस पास के प्रान्त विजय करने को भेज दिया और शीघ्र ही बयाना, धौलपुर, ग्वालियर और जौनपुर उसके अधिकार में आगये। उसकी इस सफलता में उसके हिन्दू वजीर रेमीदास को भारी श्रेय है जो अत्यन्त बुद्धिमान, चतुर और दूरदर्शी आदमी था।

अन्त में उसे राणा सांगा के साथ युद्ध करना पड़ा। कनुबा के मैदान में मुठभेड़ हुई और बाबर को सांगा से हार खानी पड़ी और सन्धि कर

सांगा को कर देने का प्रण किया। परन्तु इसी बीच में कुछ विश्वासघातियों के कारण सांगा को हार खा कर भागना पड़ा और बाबर विजयी होकर

८०