१–मध्या धीरा
सवैया
भारेहौ भूरि भराई भरे अरु, भांति सभांतिनु के मनभाये।
भाग बड़े वही भामतो के जिहि, भामते लै रंगभौन बसाये॥
भेषु भलोई भली बिधि सो करि, भूलि परे किधौं काहू भुलाये।
लाल भले हौ भलो सुखदीनो, भली भइ आजु भले बनि आये॥
शब्दार्थ—मनभाये–अच्छे लगे। भेषु–वेष। भले–अच्छे।
२–मध्या मध्यमा
सवैया
आजु कछू अँसुवानि भरे दृग, देखिय सो न कहौ जिय जोहै।
चूक परी हमही तें कछू किधौं, जापर कोप कियो वह कोहै॥
चूक अचूक हमारी यहै कहो, को नहि जोबन को मद मोहै।
स्याम सुजान सुजाने बलाइ ल्यों, जोई करौ सु तुम्हें सब सोहै॥
शब्दार्थ—असुवानि–आँसुओ से। दृग–आँखें। चूक–भूल। जापर–जिसपर। कोप–क्रोध। बलाइ ल्यो–बलैया लूं। जोई सोहै–तुम जो करो, वही ठीक है।
३–मध्या अधीरा
सवैया
भोरही भौन मैं भावतो आवत, प्यारी चितै के इतै दृग फेरे।
बाल बिलोकि कै लाल कह्यो कहु, काहे ते लाल विलोचन तेरे॥