शब्दार्थ—झरोखनि–खिड़कियाँ। मीन–मछली। मनोज–कामदेव। तेगैं–तलवारें, किरचैं।
दोहा
चित्र स्वप्न परतच्छकरि, दरसन त्रिविधि बखानु।
देस काल भङ्गीनु करि, श्रवन तीनि बिधि जानु॥
शब्दार्थ—परतच्छ–प्रत्यक्ष।
भावार्थ——सरल है।
क–दरसन
सवैया
चारु चरित्र बिचित्र बनाइ के, चित्र मैं जे निरखे अबरेखे।
चोरि लियो जिन चित्त चितौतही, त्योही बने सपने महिदेखे॥
आजु ते नन्द के मन्दिर तें, निकसे घन सुन्दर रुप बिसेखे।
होंहू अटारी भटू चढ़ी भागतें, मैं हरजू भरिजू दृगदेखे॥
शब्दार्थ—घन सुन्दररूप–बादल के समानरूपवाले। मैं...देखे–मैने हरि को मनभर के आँखों से खूब देखा।
ख–श्रवन
सवैया
ऊँचे अटा सजि सेज सजी तो, कहा हरि जो न जहाँ निसजागे।
फूलि रहे बन कुञ्ज कहा तो, बसन्त मैं जौ न लला अनुरागे॥
देव सबै गहिनें पहिरे चुनि, चाइ सो चारु बनाये हैं बागे।
सुन्दरि सुन्दर लागि है तौ, कहिहै जब सुन्दर स्याम अभागे॥
शब्दार्थ—निस–रात। चाइ सो–चाव से।