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भाव-विलास

 

भावार्थ—स्वकीयादि नायिकाओं के चार भेद और होते हैं। (१) पररति दुःखिता (२) प्रेमगर्विता (३) रूपगर्विता और (४) मानवती या मानिनी।

(१) पर रति दुःखिता
उदाहरण
सवैया

साँझही स्याम को लैन गई, सुवसी बन मै सब जामिनि जाइ कै।
सीरी बयारि छिदें अधरा, उरझे उरझाखर झार मझाइ के॥
तेरी सौ को करिहै करतूति, हतो करिबें सो करी तैं बनाइ के।
भोरहीं आई भटू इत मो, दुखदाइनि काज इतौ दुख पाइ के॥

शब्दार्थ—जामिनि–रात, रात्रि। सीरी–ठंडी। बयारि–हवा। छिदें–छिद जाँय। उरझे–उलझे, उलझ जाय।

(२) प्रेमगर्विता
उदाहरण
सवैया

ये बिनु गारी दये गुरुलोगन, टेरेईं सैन न नैनन टेरेईं।
देव कहै दुरि द्वार लों जात, कितौ करि हारी तऊ हरि हेरेई॥
पाय यही घर बैठि रहौं, जु तौ वे मिलि खेलन आवत मेरेई।
घेरु करें घर बाहिर के अरु, ये सुफिरैं घर बाहिर घेरेई॥

शब्दार्थ—सैन=इशारा, संकेत। दुरि=छिपकर। कितौ=कितनाही। घेरू–निंदा, चबाब।