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भाव-विलास


शब्दार्थ—करै प्रसन्न—जो मन को प्रसन्न करती रहे। प्रियहि मिलावे—प्रेमी से मुलाकात करवावे। उपदिसै—उपदेश दे। रहै....आसन्न—हर समय निकट रहे। उराहनो—उलाहना जाके.....विस्वास—जिस पर अत्यन्त विश्वास हो।

भावार्थ—जो स्त्री सदा पास में रहे, भूषण आदि सजाने में सहायता दे, पति से मुलाकात करवावे, हर समय चित्त के प्रसन्न करने की चेष्टा करे, समय पड़ने पर उचित उपदेश देकर शान्ति करे, नायिका की ओर से पति को उलाहना दे, और जिस पर अत्यन्त विश्वास हो उसे सखी कहते है।

उदाहरण
सवैया

बालबधू के बिनोद बढ़ाइ, भली बिधि भूषन भेष बनावै।
चाइ सो चित्त प्रसन्न करै, रसरंग मैं संग सयानि सिखावै॥
उराहनो दोउन को मन राखि, कहे कवि देव दुहून मिलावै।
नाह सो नेह ततौ निबहै जब, भाग तें ऐसी सखी करि पावै॥

शब्दार्थ—चाइसों—प्रेम पूर्वक। रसरंग—काम क्रीड़ा।

दूती
दोहा

धाइ, सखी, दासी नटी, ग्वालि सिल्पनी नारि।
मालिनि नाइन बालिका, बिधवा बिधू बिचारि॥
सन्यासिन भिक्षुक बधू, सम्बन्धी की बाम।
एती होती दूतिका, दूतप्पन अभिराम॥