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अलंकार


शब्दार्थ—संसै—संशय।

भावार्थ—जहाँ उपमा और उपमेय में संदेह उपस्थित हो, वहाँ संशय अलंकार होता है।

उदाहरण
सवैया

 
श्री वृषभानकुमारी के रूप की, न्यारी कै को उपमा उपजावै।
चंचल नैन के मैन के बान, कि खञ्जन मीनन कोई बतावै॥
आनँद सो बिहसाति जबै, कविदेव तबै बहुधा मनधावै।
कै मुख कैधो कलाधर है, इतनो निहच्योई नहीं चित आवै॥

शब्दार्थ—मैन के बान—कामदेव के बाण। खञ्जन—पक्षी विशेष जिसकी आँखें बहुत सुन्दर मानी गयी है। निहच्योई—निश्चय! कलाधर—चन्द्रमा। कै....आवे—निश्चय नहीं होता कि यह मुख है अथवा चन्द्रमा।

५—अनन्वय
दोहा

तैसो सोई बरनिये, जहाँ न और समान।
ताहि अनन्वय नाम कहि, बरनत देव सुजान॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जिसकी उपमा के लिए; कोई अन्य वस्तु न हो अर्थात् उसके समान वही हो उसे अनन्वय अलंकार कहते है।

उदाहरण
सवैया

कस से केस लसे मुख सौ मुख, नैन से नैन रहे रङ्ग सो छकि।
देव कहै सब अङ्ग से अङ्ग, सुरङ्ग दुकूलनि मैं झलकै झकि॥

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