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भाव-विलास


और नहीं उपमा उपजै जग, ढूंढ़ो सबै सब भांतिन सोंतकि।
राधिका श्री वृषभानुकुमारी, तोसी तुहीं अरु कौन सरै बकि॥

शब्दार्थ—दुकूलनि—वस्त्र। ढूंढ़ो......तकि—हरएक तरह से खोजकर देखने पर भी। तोसी तुही...बकि—तेरे समान तूही है और अधिक बकने से क्या लाभ।

६–७—रूपक और अतिशयोक्ति
दोहा

सम समान जैंसे जनो, जिमि ज्यों मानो तूल।
और सरिस कबिदेव ए, पद उपमा के मूल॥
जहँ उपमा मैं ये न पद, सोई रुपक जानु।
सीमा ते अति बरनिये, अतिसय ताहि बखानु॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—सम, समान, जैसे, जनो, जिमि, ज्यो, मानो, तुल्य तथा सरिस ये उपमासूचक शब्द जिस उपमा में न आवें, उसे रूपक और जहाँ सीमासे अधिक किसी का वर्णन हो, उसे अतिशय अलंकार कहते हैं।

उदाहरण
कवित्त

मन्दहास चन्द्रका कौ मन्दिर बदन चन्द,
सुन्दर मधुरबानि सुधा सरसाति है।
इन्दिर के ऐन नैन इन्दीबर फूलिरहे,
बिद्रुम अधर देत मोतिन की पांति है॥
ऐसो अद्भुत रूप राधिका कौ देव देखौ,
जाके बिनु देखे छिन छाती न सिराति है।