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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१६१

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१४९
अलंकार

 

उदाहरण
सवैया

मैं सुनी कालि परो लगि सासुरे, जैहो सुसांची कहौ किनि सोऊ।
देव कहै केहि भांति मिलै अब, को जाने काहि कहा कब कोऊ॥
भेटि तो लेहु भटू उठि स्याम को, आजुही की निस आये हैं ओऊ।
हौं अपने दृग मूंदति हो धरि, धाइ के आज मिलो तुम दोऊ॥

शब्दार्थ—साँची कहो किनि—सच सच क्यों नहीं कहतीं। हौ मैं। द्रग—आँखें।

११—सहोक्ति
दोहा

सो सहोक्ति जहँ सहित गुन, कीजे सहज बखान।
अलङ्कार कवि देव कहि, सो सहोक्ति उर आनि॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—'सहित' शब्द के साथ जहाँ किसी गुण का वर्णन किया जाय वहाँ सहोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण
सवैया

प्यारी के प्रान समेत पियो, परदेस पयान की बात चलावै।
देव जू छोभ समेत छपा, छतियाँ मैं छपाकर की छबि छावै॥
बोलि अली बन बीच बसन्त कौ, मीचु समेत नगीच बतावै।
काम के तीर समेत समीर, सरीर में लागत पीर बढ़ावै॥