पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/३

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प्रस्तावना

महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की अनेक बातों के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हें इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, ज़िला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हें समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण में उन्होंने निम्न दोहे दिये हैं:—

द्योसरिहा कविदेव को, नगर इटायो वास।

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कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय।

देवदत्त कवि जगत मैं, भए देव रमनीय॥

आप लोगों ने कुसुमरा ज़िला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि:—

सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष॥
कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष॥

इस हिसाब से संवत् १७४६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।

देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह